15 अगस्त 1534 के दिन, इग्नेशियस लोयोला (अज़पेटिया – स्पेन), फ़्रांसिस्को ज़ेवियर (नवार्रा – स्पेन), अलफ़ोन्सो सालमेरोन (तोलेदो – स्पेन), डियेगो लाइनेज़ (अलमासांज़ – स्पेन), निकोलस बोबादीया (पालेंसिया – स्पेन), पीटर फ़ाबर (सावोए (सेन्ट ज़ीन डी सिक्सट) – फ़्रांस), और सिमाओ रोद्रीगेज़ (वोऊज़ेला – पुर्तगाल), ने पेरिस शहर के बाहर मोंटमाख़्त में, सन्त डेनिस (अब सेंट पीएख़ दे मोंटमाख़्त) के गिरजाघर के नीचे बने तहखाने में मुलाकात की और निर्धनता, शुद्धता और आज्ञाकारिता की प्रतिज्ञाएँ ली।
उन्होंने स्वयं को यीशु के सहकर्मी और साथ ही “प्रभु में मित्र” कह कर पुकारा, क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उन्हें मसीह के द्वारा एकत्र किया गया था।
सन् 1537 में, उन्होंने पोप से अपने समाज के लिए स्वीकृति प्राप्त करने के लिए इटली की यात्रा की। पोप तृतीय ने उनकी अनुंशसा की, और उन्हें अभिषिक्त पुरोहित होने के लिए अनुमति दी।
27 सितम्बर 1540 में पोप पॉल तृतीय ने यीशु समाजियों के अधिकारिक कैथालिक धार्मिक समाज होने की पुष्टि की।
सोसाइटी के संस्थापन दस्तावेज की प्रारम्भिक पँक्तियाँ ऐसे घोषणा करती हैं कि इस सोसाइटी की स्थापना उस प्रत्येक व्यक्ति के लिए है “जो परमेश्वर के सैनिक के रूप में सेवा करना चाहता है,” विशेषकर जो विश्वास के प्रचार और धर्म मण्डन और मसीही जीवन और धर्म सिद्धान्त में आत्माओं की उन्नति के लिए प्रयासरत् हो।
यही कारण है कि क्यों यीशु समाजियों को कई बार बोलचाल की भाषा में “परमेश्वर के सैनिक,”“परमेश्वर के नौसैनिक,” या “सहकर्मी” कह कर पुकारा जाता है (जो कि इग्नेशियस के इतिहास के संदर्भ से विकसित हुआ है) क्योंकि वह एक सैनिक के रूप में कभी भी और कहीं पर भी, किसी भी परिस्थिति में सोसाइटी के आदेशों को स्वीकार करने के लिये प्रतिबद्ध होते हैं।